मंदिर में मूर्ति की स्थापना से पहले प्राण प्रतिष्ठा क्यों की जाती है
प्राण प्रतिष्ठा, या देवता को दिव्यता से युक्त करने की प्रक्रिया, मंदिर में मूर्ति की स्थापना से पहले क्यों की जाती है, इसके पीछे कई महत्वपूर्ण कारण हो सकते हैं:
देवता का आवाहन: प्राण प्रतिष्ठा के द्वारा देवता को मंदिर में आवाहन किया जाता है। यह उन्हें मूर्ति के रूप में प्रस्तुत करने का एक साकार माध्यम है जिससे भक्त उनकी उपस्थिति को महसूस कर सकता है।
भक्ति और समर्पण: प्राण प्रतिष्ठा के माध्यम से भक्त अपनी भक्ति और समर्पण की भावना को देवता के साथ साझा करता है। यह ध्यान और पूर्ण समर्पण की भावना को बढ़ावा देता है।
आत्मिक संबंध का उद्दीपन: प्राण प्रतिष्ठा से भक्त को देवता के साथ आत्मिक संबंध बनाने का उद्दीपन होता है। यह उसे आत्मा की ऊँचाई और आत्मिक अद्वितीयता की ओर प्रवृत्त करता है।
धार्मिक पूजा और सेवा: प्राण प्रतिष्ठा से देवता को धार्मिक पूजा और सेवा के लिए सजीव बनाया जाता है। यह भक्त को अपनी आस्था और प्रेम को देवता के प्रति व्यक्त करने में सहायक होता है।
शक्ति संजीवनी: प्राण प्रतिष्ठा से मूर्ति को शक्ति संजीवनी मिलती है। यह उन्हें दिव्य और जीवंत बनाकर उन्हें पूर्णता की अवस्था में स्थापित करता है।
आध्यात्मिक शक्ति का बढ़ावा: प्राण प्रतिष्ठा से देवता को आध्यात्मिक शक्ति की प्राप्ति होती है। यह ध्यान और आत्म-ज्ञान की प्राप्ति में सहायक होता है और देवता को उनकी परम शक्तियों से युक्त करता है।
समृद्धि और शांति की प्राप्ति: प्राण प्रतिष्ठा से भक्त को अपने जीवन में समृद्धि और शांति की प्राप्ति होती है। यह धार्मिक मार्गदर्शन करके आत्मिक शांति की प्राप्ति में सहायक होता है।
प्राण प्रतिष्ठा में भगवान की आंखों पर पट्टी क्यों बंधी जाती है:
प्राण प्रतिष्ठा के दौरान, विशेषकर हिन्दू धार्मिक परंपरा में, भगवान की मूर्ति की आंखों पर पट्टी बंधी जाती है और यह क्रिया कई धार्मिक और आध्यात्मिक सिद्धांतों से जुड़ी होती है। इसमें कई कारण हो सकते हैं:
आत्म-ज्ञान का सिद्धांत: भगवान की मूर्ति के द्वारा व्यक्त किए जाने वाले सिद्धांतों में से एक यह है कि भगवान सबकी आत्मा को देखते हैं और उनकी आंखें सबकुछ देखती हैं। इस पट्टी के माध्यम से इस सिद्धांत को प्रतिष्ठित किया जाता है।
भक्ति और समर्पण: आंखों पर पट्टी बंधना एक प्रकार की भक्ति और समर्पण की प्रतीति को दर्शाता है। यह भक्त के लिए भगवान के सामने अपनी अनासक्ति और समर्पण की भावना को प्रकट करता है।
मानवीय सांस्कृतिक परंपरा: इस पट्टी की परंपरा भारतीय सांस्कृतिक में प्राचीन समय से है। इसमें समर्थ ऋषियों और आचार्यों की उपदेशों का पालन करने का एक प्रतीति भी हो सकता है।
मूर्ति को व्यक्ति नहीं मानने का संकेत: पट्टी बंधना मूर्ति को एक साधन के रूप में मानने का संकेत नहीं होता है, बल्कि यह यह दिखाता है कि मूर्ति को व्यक्ति नहीं माना जाता है। भगवान का स्वरूप अनन्त है और उसे मानवीय दृष्टिकोण से समझना संभावनाहीन है।
मूर्ति की उद्दीपन: आंखों पर पट्टी बंधना इसका भी संकेत कर सकता है कि मूर्ति को सिर्फ एक वस्तु नहीं, बल्कि एक उद्दीपन के रूप में देखा जाता है। यह आत्मा के प्रकाश को दर्शाने का एक तरीका हो सकता है।