अघोरि मुख्य रूप से भगवान शिव के साधक होते हैं। इनके तौर-तरीके और पहनावा एक आम व्यक्ति के काफी अलग होता है। अघोरी बनने की पहली शर्त यही है कि व्यक्ति को अपने घृणा को निकालना होता है। इसलिए समाज जिन चीजों से घृणा करता है, अघोरी पंथ उसे ही अपनाता हैं। एक अघोरी को न तो जीवन का मोह होता है और न ही मृत्यु का डर।
अघोरि बाबा भी शिवजी के अघोरनाथ रूप की उपासना करते हैं
अघोरी बाबा भी शिवजी के अघोरनाथ रूप की उपासना करते हैं, जिसका वर्णन श्वेताश्वतरोपनिषद में मिलता है। इसके साथ ही बाबा भैरवनाथ को भी अघोरी अपना आराध्य मानते हैं। भगवान शिव के अवतार माने गए अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरु माना गया है।
अघोरपंथ के प्रणेता भगवान शिव माने जाते हैं। कहा जाता है कि भगवान शिव ने स्वयं अघोरपंथ को प्रतिपादित किया था। अवधूत भगवान दत्तात्रेय को भी अघोरशास्त्र का गुरु माना जाता है। अवधूत दत्तात्रेय को भगवान शिव का अवतार भी मानते हैं। अघोर संप्रदाय के विश्वासों के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और शिव इन तीनों के अंश और स्थूल रूप में दत्तात्रेय जी ने अवतार लिया।
अघोरि संप्रदाय के एक संत के रूप में बाबा किनाराम की पूजा होती है। अघोर संप्रदाय के व्यक्ति शिव जी के अनुयायी होते हैं। इनके अनुसार शिव स्वयं में संपूर्ण हैं और जड़, चेतन समस्त रूपों में विद्यमान हैं। इस शरीर और मन को साध कर और जड़-चेतन और सभी स्थितियों का अनुभव कर के और इन्हें जान कर मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है।
अघोरी वही बन सकता है, जो सांसारिक मोह-माया से ऊपर उठ चुका है। जहां एक आम व्यक्ति श्मशान से दूरी बनाए रखना चाहता है, वहीं अघोरपंथ शमशान में ही वास करना पसंद करते हैं। अघोरपंथ में श्मशान साधना का विशेष महत्व माना गया है। साथ ही यह भी माना गया है कि श्मशान में की गई साधना का फल शीघ्र ही प्राप्त होता है।
ऐसे होती है साधना
जब एक अघोरी किसी शव के ऊपर पैर रखकर साधना करता है, तो वह शिव और शव साधना कहलाती है। इस साधना में प्रसाद के रूप में मुर्दे को मांस और मदिरा चढ़ाई अर्पित की जाती है। अघोरी एक पैर पर खड़े होकर महादेव की साधना करते हैं और शमशान में बैठकर हवन करते हैं।
अघोरि अपने पास नरमुंड यानी इंसानी खोपड़ी रखते हैं, जिसे‘कापालिका’ कहा जाता है। साथ ही वह इसका प्रयोग भोजन के पात्र की तरह भी करते हैं। अकसर कच्चे मांस यहां तक की मानव शव का भी भक्षण करते हैं। अघोरियों की एक पहचान यह भी है कि वह किसी से कुछ नहीं मांगते। अघोरी अपने शरीर पर चिता की राख लपेटे रहते हैं और चिता की अग्नि पर ही अपना भोजन पकाते हैं।
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यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि अघोरी प्रथाएं मुख्यधारा के हिंदू धर्म का प्रतिनिधित्व नहीं करती हैं, और लोकप्रिय संस्कृति में उनकी मान्यताओं और अनुष्ठानों को अक्सर गलत समझा जाता है या सनसनीखेज बनाया जाता है। वे हिंदू आध्यात्मिक परंपराओं के व्यापक स्पेक्ट्रम के भीतर एक अलग मार्ग का अनुसरण करते हैं, जो सभी प्राणियों की एकता और भौतिक अस्तित्व की क्षणभंगुर प्रकृति पर जोर देते हैं।
इस सम्प्रदाय के अनुयायी अपनी आध्यात्मिक साधना के माध्यम से अंतःकरण और मुक्ति की प्राप्ति का प्रयास करते हैं। वे सामाजिक परंपराओं से अलग होते हैं और अपनी विशेष धार्मिक अनुष्ठानों में लीन रहते हैं।
अघोरी सम्प्रदाय के प्रवक्ता अपने अंतर्मन को प्रकट करने और आत्मा के अंतर्यात्रा में दीर्घायु करने का ध्यान रखते हैं। इस प्रकार, अघोरी सम्प्रदाय अपनी अद्वितीय और अध्यात्मिक विचारधारा के लिए प्रसिद्ध है।
अघोरी सम्प्रदाय के अनुयायी विशेष रूप से शिव के विभिन्न रूपों जैसे महाकाल, भैरव, रुद्र आदि की उपासना करते हैं। उनके अनुसार, शिव अंतर्यामी और सबका पालनहार हैं, जो समस्त जीवन की सृष्टि और विनाश के प्रभु हैं।
अघोरि सम्प्रदाय में शिव को माना जाता है जो सम्पूर्ण जीवन के साथ ही संसार के समस्त अस्तित्व का भी प्रतिनिधित्व करते हैं। इसके अलावा, अघोरी सम्प्रदाय के अनुयायी शिव को मोक्ष और अंतरात्मा के अद्वितीय सिद्धांतों के प्रतीक मानते हैं। वे शिव के ध्यान, ध्यान और तापस्या में लीन रहते हैं, जिससे उन्हें अंतर्मुखी होने और आत्मा के गहरे रहस्यों को समझने में मदद मिलती है।
इस प्रकार, अघोरी सम्प्रदाय शिव के अनुपालन में अपने जीवन को समर्पित करता है, जिससे वे अपने आध्यात्मिक उन्नति के मार्ग पर अग्रसर होते हैं। अघोरि